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16:20, 16 अगस्त 2015 के समय का अवतरण
पत्नी हेमा के लिए
न ओस की बूंदें सिहरन से भरती हैं
न ठण्डी हवा जमाती है बर्फ़ की तरह
चाँद फूल की तरह खिलने लगता है
तारे छितराने लगते हैं अपना रंग
तुम पास हो और कहीं अन्धेरा नहीं उदासी नहीं चुप्पी नहीं
ये फूल बिना मौसम के भी खिल रहे हैं और
इनका रंग हद से ज्यादा गाढ़ा हो रहा है
तुमने तो मौसम को बदल दिया है
चुपके-चुपके बिना बताए ।