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"तालिब ए दीद हूँ चेहरा तो दिखा, देखूँ मैं/रविंदर कुमार सोनी" के अवतरणों में अंतर
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− | तालिब ए दीद हूँ चेहरा तो दिखा, देखूँ मैं
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− | दरमियाँ पर्दा है क्या, पर्दा उठा देखूँ मैं
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− | मेरी रूदाद पे उस शोख़ की आँखें पुरनम
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− | क़ैस ओ फ़रहाद का अफ़साना सुना देखूँ मैं
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− | आ कभी तू मिरे आँगन में दुलहन बनकर आ
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− | तेरे हाथों पे लगा रँग ए हिना देखूँ मैं
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− | कोई आहट तो हो टूटे मिरे ज़िन्दाँ का सकूत
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− | चुप रहूँ, पाँव की ज़न्जीर हिला देखूँ मैं
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− | अपनी क़िस्मत के सितारे को कि बेनूर सा है
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− | तोड़ कर अर्श से धरती पे गिरा देखूँ मैं
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− | आज गुलशन की हर इक शाख़ है फूलों से लदी
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− | दिल ए पज़मुरदा को भी हँसता हुआ देखूँ मैं
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− | बेसतूँ पर कि किसी नज्द में क्या जाने ‘रवि’
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− | मुझे मिल जाए कहाँ मेरा पता देखूँ मैं
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12:31, 30 अगस्त 2015 के समय का अवतरण