"ख़ुदा वो वक़्त न लाये / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ }} ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि सोग़वार हो ...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | + | |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि सोग़वार हो तू<br> |
− | + | ||
− | ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि सोग़वार हो तू<br> | + | |
सुकूँ की नींद तुझे भी हराम हो जाये<br> | सुकूँ की नींद तुझे भी हराम हो जाये<br> | ||
तेरी मसर्रत-ए-पैहम तमाम हो जाये<br> | तेरी मसर्रत-ए-पैहम तमाम हो जाये<br> | ||
तेरी हयात तुझे तल्ख़ जाम हो जाये<br><br> | तेरी हयात तुझे तल्ख़ जाम हो जाये<br><br> | ||
− | |||
ग़मों से आईना-ए-दिल गुदाज़ हो तेरा<br> | ग़मों से आईना-ए-दिल गुदाज़ हो तेरा<br> | ||
− | हुजूम्-ए-यास से बेताब होके रह जाये<br> | + | हुजूम्-ए-यास से बेताब होके रह जाये<br> |
वफ़ूर-ए-दर्द से सीमाब हो के रह जाये<br> | वफ़ूर-ए-दर्द से सीमाब हो के रह जाये<br> | ||
तेरा शबाब फ़क़त ख़्वाब हो के रह जाये<br><br> | तेरा शबाब फ़क़त ख़्वाब हो के रह जाये<br><br> | ||
− | |||
ग़ुरूर-ए-हुस्न सरापा नियाज़ हो तेरा<br> | ग़ुरूर-ए-हुस्न सरापा नियाज़ हो तेरा<br> | ||
− | तवील रातों में तू भी क़रार को तरसे<br> | + | तवील रातों में तू भी क़रार को तरसे<br> |
तेरी निगाह् किसी ग़मगुसार को तरसे<br> | तेरी निगाह् किसी ग़मगुसार को तरसे<br> | ||
ख़िज़ाँरसीदा तमन्ना बहार को तरसे<br><br> | ख़िज़ाँरसीदा तमन्ना बहार को तरसे<br><br> | ||
− | |||
कोई जबीं न तेरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके<br> | कोई जबीं न तेरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके<br> | ||
− | कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे<br> | + | कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे<br> |
फ़रेब-ए-वादा-ए-फ़र्द पे अएतमाद् करे<br> | फ़रेब-ए-वादा-ए-फ़र्द पे अएतमाद् करे<br> | ||
− | ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि तुझ को याद आये<br><br> | + | ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि तुझ को याद आये<br><br> |
वो दिल कि तेरे लिये बे-क़रार अब भी है<br> | वो दिल कि तेरे लिये बे-क़रार अब भी है<br> | ||
वो आँख जिस को तेरा इन्तज़ार अब भी है | वो आँख जिस को तेरा इन्तज़ार अब भी है |
21:43, 17 मार्च 2008 का अवतरण
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि सोग़वार हो तू
सुकूँ की नींद तुझे भी हराम हो जाये
तेरी मसर्रत-ए-पैहम तमाम हो जाये
तेरी हयात तुझे तल्ख़ जाम हो जाये
ग़मों से आईना-ए-दिल गुदाज़ हो तेरा
हुजूम्-ए-यास से बेताब होके रह जाये
वफ़ूर-ए-दर्द से सीमाब हो के रह जाये
तेरा शबाब फ़क़त ख़्वाब हो के रह जाये
ग़ुरूर-ए-हुस्न सरापा नियाज़ हो तेरा
तवील रातों में तू भी क़रार को तरसे
तेरी निगाह् किसी ग़मगुसार को तरसे
ख़िज़ाँरसीदा तमन्ना बहार को तरसे
कोई जबीं न तेरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे
फ़रेब-ए-वादा-ए-फ़र्द पे अएतमाद् करे
ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि तुझ को याद आये
वो दिल कि तेरे लिये बे-क़रार अब भी है
वो आँख जिस को तेरा इन्तज़ार अब भी है