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|रचनाकार=अनंतप्रसाद ‘रामभरोसे’
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बच्चों के संग बच्चा होना
कितना अच्छा लगता है!
कभी खेल में हँसना गाना
ता-ता थैया नाच दिखाना,
और कभी नाराज सभी से
हो जाना, फिर मुँह लटकाना।
झूठ-मूठ ऊँ-ऊँ कर रोना
कितना अच्छा लगता है!
गाल फुला आँखें मिचकाना
करना काम कभी बचकाना,
बंदर जैसी हरकत करके
कभी डराना फिर भग जाना।
खाना झूठ मूठ ले दौना
कितना अच्छा लगता है!
कल्लू नीनू चुन्नू-दीनू
के संग मिलकर गप्प लड़ाना,
इंजन बनकर छुक-छुक करना
या टिक-टिक घोड़ा बन जाना।
ऊपर लाद सभी को ढोना
कितना अच्छा लगता है!
</poem>
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