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"बल्ब / प्रेमनारायण गौड़" के अवतरणों में अंतर

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05:02, 28 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण

बिजली का यह बल्ब निराला,
फैलाता सब ओर उजाला!

दीपक दादा हुए पुराने,
अपनी सूरत लगे छिपाने!

तेज हवा में थे बुझ जाते,
वर्षा में थे मुँह की खाते!

इधर मोमबत्ती घबराई,
बला कहाँ की है यह आई!

पूछ न उसकी अब थी कोई,
अपनी किस्मत को वह रोई!

इधर बल्ब इतराता फिरता,
अंधकार घर-घर का हरता!

बस झटके से इसे जलाओ,
जब चाहो तब इसे बुझाओ!

गाँव, शहर या कस्बा प्यारा,
है प्रकाश का यही सहारा!