भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भालू हुआ वकील / वसु मालवीय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वसु मालवीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:05, 28 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण
बी.ए. ओर एल-एल.बी. पढ़कर
भालू हुआ वकील,
फर्राटे से लंबी-चौड़ी
देने लगा दलील।
जैसे टहल रहा जंगल में
वैसे चला कचहरी,
रस्ते में ही लगी टोकने
उसको ढीठ गिलहरी।
बोली,‘दादा, पहले काला-
कोट सिलाकर आना,
तभी कचहरी जाकर तुम
अपना कानून दिखाना!’
भालू हँसा ठठाकर, बोला-
‘तुमको क्या समझाऊँ,
जनम लिया ही कोट पहनकर
अब क्या कोट सिलाऊँ!’
-साभार: नंदन, दिसंबर 1996, 30