भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कानाबाती कुर्र / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:25, 28 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण
अरी चिरइया नींद की,
हो जा जल्दी फुर्र!
कानाबाती कुर्र!
छोड़ अपने आराम को
सूरज निकला काम को,
देकर सबको रोशनी
घर लौटेगा शाम को।
तू भी जल्दी छोड़ दे
खर्राटों की खुर्र!
कानाबाती कुर्र!
जगीं शहर की मंडियाँ
गाँवों की पगडंडियाँ,
खेतों ने भी दिखलाईं
हरी फसल की झंडियाँ।
चली सड़क पर मोटरें
घर-घर-घर-घर घुर्र!
कानाबाती कुर्र!