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"हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

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हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे<br>
 
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे<br><br>
 
  
अस्बाब-ए-ग़म-ए-इश्क़ बहम करते रहेंगे<br>
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तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं<br>
वीरानी-ए-दौराँ पे करम करते रहेंगे<br><br>
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किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं<br><br>
  
हाँ तल्ख़ी-ए-अय्याम अभी और बड़ेगी<br>
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हदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं<br>
हाँ अहल-ए-सितम मश्क़-ए-सितम करते रहेंगे<br><br>
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तो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं<br><br>
  
मंज़ूर ये तल्ख़ी ये सितम हम को गवारा<br>
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हर अजनबी हमें महरम दिखाई देता है<br>
दम है तो मदावा-ए-अलम करते रहेंगे<br><br>
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जो अब भी तेरी गली गली से गुज़रने लगते हैं<br><br>
  
मैख़ाना सलामत है तो हम सुर्ख़ी-ए-मय से<br>
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सबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतन<br>
तज़्ज़ीन-ए-दर-ओ-बाम-ए-हरम करते रहेंगे<br><br>
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तो चश्म-ए-सुबह में आँसू उभरने लगते हैं<br><br>
  
बाक़ी है लहू दिल में तो हर अश्क से पैदा<br>
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वो जब भी करते हैं इस नुत्क़-ओ-लब की बख़ियागरी<br>
रंग-ए-लब-ओ-रुख़सार-ए-सनम करते रहेंगे<br><br>
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फ़ज़ा में और भी नग़्में बिखरने लगते हैं<br><br>
  
एक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारक<br>
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दर-ए-क़फ़स पे अँधेरे की मुहर लगती है<br>
एक अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे
+
तो "फ़ैज़" दिल में सितारे उतरने लगते हैं

23:50, 29 जनवरी 2008 के समय का अवतरण

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं

हदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं
तो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं

हर अजनबी हमें महरम दिखाई देता है
जो अब भी तेरी गली गली से गुज़रने लगते हैं

सबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतन
तो चश्म-ए-सुबह में आँसू उभरने लगते हैं

वो जब भी करते हैं इस नुत्क़-ओ-लब की बख़ियागरी
फ़ज़ा में और भी नग़्में बिखरने लगते हैं

दर-ए-क़फ़स पे अँधेरे की मुहर लगती है
तो "फ़ैज़" दिल में सितारे उतरने लगते हैं