भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साग पकाया / सत्य प्रकाश कुलश्रेष्ठ" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्य प्रकाश कुलश्रेष्ठ |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:00, 30 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण
बंदर गया खेत में भाग,
चुट्टर-मुट्टर तोड़ा साग।
आग जला कर चट्टर-मट्टर,
साग पकाया खद्दर-बद्दर।
सापड़-सूपड़ खाया खूब,
पोंछा मु हूँह उखाड़ कर दूब।
चलनी बिछा, ओढ़कर सूप,
डटकर सोए बंदर भूप!