भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"महुए के पीछे से झाँका है चाँद / रामनरेश पाठक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:20, 1 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
महुए के पीछे से झाँका है चाँद
पिया आ
आँगन में बिखराए जूही के फूल
पलकों तक तीर आये सपनों के कूल
नयन मूँद लो, बड़ा बांका है चाँद
पिया आ
बाँट गयी सान्झिल हवाएं पराग
बांकी स्वर लौट गए, शेष वही राग
टेसू के फूल-सा टहका है चाँद
पिया आ
प्रीत से नहाया है तन का हिरन
चुपके से चुनता है क्वाँरी किरण
जीतो तो इससे लड़ाका है चाँद
पिया आ ।