भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गुस्सा हैं हम / उषा यादव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavit...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:52, 2 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

बिल्कुल नहीं आज मानेंगे,
चाहे लाख मनाओ जी।
गुस्सा हैं हम, जाओ जी।

हर इतवार हमें चिड़ियाघर,
चलने का लालच देंगे।
और उसी दिन दुनिया भर के
कामों को फैला लेंगे।
बुद्धू हमें समझ रखा है,
चाकलेट से बहलाते!
टूटी आस लिए यों ही हम
खड़े टापते रह जाते।
नहीं खाएँगे, नहीं खाएँगे,
टाफी लाख खिलाओ जी।

झूठ अगर बच्चे बोलें तो,
खूब डाँट वे खाते हैं।
यही काम पापा जी करते,
और साफ बच जाते हैं।
मम्मी साथ हमारे मिलकर
इनको डाँट लगाओ तुम।

वरना तुम से भी कुट्टी है,
दूर यहाँ से जाओ तुम।
मुँह फूला ही रखेंगे अब,
चाहे लाख हँसाओ जी।