भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फिर कभी / पद्मा चौगांवकर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्मा चौगांवकर |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:12, 2 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
नदी किनारे पंछी आकर,
बोला जल में चोंच डुबाकर-
‘मछली रानी, ओ दीवानी,
क्यों करती है, पानी-पानी,
क्यों न हवा से बात करे,
आसमान आबाद करे?’
मछली तब लहरों पर डोली,
धीरे से मुसकाकर बोली-
ओ पगले पंछी मस्ताने,
तू क्या जल की बातें जाने,
व्यर्थ उड़ानें ऊँची भरकर,
आखिर आता इसी जमीं पर!
आ, लहरों पर खेलें-नाचें,
आ, जल का तल नापें-जाँचें
सुनकर पंछी चौंका संभला,
सचमुच मुझे हो गया नज़ला।
है बुखार भी रहता अकसर,
और तौलिया छूटा घर पर,
राम राम फिर कभी मिलेंगे,
पानी में नाचें-खेलेंगे।