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चरवाहे-सी लाठी पकड़े, चिकनी पतली छोटी,
बप्पा जैसी घड़ी कमर में, ताऊ जैसी धोती।
मुंशी जी की तरह लगी है, ऐनक भी आँखों पर,
तेरी जैसी चप्पल पहने, नानी जैसी चादर।
चेहरे से लगता है, मानो कई जन्म से मौन हैं।
अम्माँ! बतला दे मुझको-‘यह बाबा जैसे कौन हैं?’
ये जीवन की कर्मभूमि में कर्मवीर बन आए,
ये दुख की दोपहरी में, सुख के समीर बन आए।
ये आए हैं मानवता के सोए-भाग्य जगाने,
ये आए हैं दुखिया धरती-माँ के फंद छुड़ाने।
सत्य-बीन से राग अहिंसा का हैं मंत्र सुनाते,
मोहन के हैं दास, विश्व के ‘बापू’ हैं कहलाते।
-साभार: रंग की राष्ट्रीय कविताएँ, 307