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"दही-बड़े हम / प्रकाश मनु" के अवतरणों में अंतर
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− | दौड़े आओ | + | खाओ भाई खड़े-खड़े! |
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− | खाओ भाई खड़े-खड़े | + | |
+ | स्वाद मिलेगा कहीं न ऐसा, | ||
+ | चखकर देखो फेंको पैसा। | ||
+ | टाफी-च्यूंगम, आइसक्रीम के | ||
+ | पल में लो झंडे उखड़े। | ||
− | + | अजब-अनोखा रंग जमाया, | |
− | + | डंका हमने खूब बजाया। | |
− | + | आ ठेले पर, खड़े हुए हैं, | |
− | + | लाला, बाबू बड़े-बड़े। | |
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+ | अपनी मस्ती, अपनी हस्ती, | ||
+ | खा करके आती है चुस्ती। | ||
+ | तबियत कर दें खूब झकाझक- | ||
+ | अगर कोई इमसे अकड़े। | ||
− | + | पेड़ा, बरफी चित्त पड़े हैं, | |
− | + | रसगुल्ले उखड़े-उखड़े हैं। | |
− | + | भला किसी की यह मजाल जो | |
− | + | आकर के हमसे झगड़े। | |
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18:21, 3 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
दही-बड़े हम दही बड़े!
दौड़े आओ, मत शरमाओ
खाओ भाई खड़े-खड़े!
स्वाद मिलेगा कहीं न ऐसा,
चखकर देखो फेंको पैसा।
टाफी-च्यूंगम, आइसक्रीम के
पल में लो झंडे उखड़े।
अजब-अनोखा रंग जमाया,
डंका हमने खूब बजाया।
आ ठेले पर, खड़े हुए हैं,
लाला, बाबू बड़े-बड़े।
अपनी मस्ती, अपनी हस्ती,
खा करके आती है चुस्ती।
तबियत कर दें खूब झकाझक-
अगर कोई इमसे अकड़े।
पेड़ा, बरफी चित्त पड़े हैं,
रसगुल्ले उखड़े-उखड़े हैं।
भला किसी की यह मजाल जो
आकर के हमसे झगड़े।