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18:24, 3 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

आज सवेरे
काम किए मैंने कुछ अच्छे!

आज सवेरे गया पार्क में
देखा मैंने फूलों को,
फूलों को देखा तो भाई
समझ गया मैं भूलों को!

तय कर डाला मस्त रहूँगा
और हँसूँगा खिल-खिलकर,
मेहनत से हर काम करूँगा
दिखलाऊँगा कुछ बनकर!

आकर होम वर्क कर डाला
फिर पौधों में पानी डाला,
पापा बोले-
देखो-देखो
ऐसे होते अच्छे बच्चे!

बैठ धूप में चिड़ियों को
देखा मैंने कथा सुनाते,
पहली बार पेड़ को देखा
हौले-हौले से मुस्काते!

सजा हुआ था आसमान में
रंगों का प्यारा मेला,
आहा, अपना जीवन भी है
सचमुच, कैसा अलबेला!

मैंने कविता एक बनाई
सुनकर झट दीदी मुस्काई,
सुंदर और बनेगी दुनिया-
काम करें हम अच्छे-अच्छे!