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"लड़की मौसम की / सीताराम गुप्त" के अवतरणों में अंतर

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खिले कमल सी जिसकी सूरत,
आँखें शबनम की,
आई फ्रॉक पहन कुहरे की
लड़की मौसम की।

है बर्फीली चाल, हवा से
साँठ-गाँठ इसकी,
बड़ी कटखनी, काट गई तो
नस-नस तक कसकी।
पीट साँकलें दे जाती हर
दरवाजे धमकी।

तिल बुग्गे, रेवड़ी, गजक की
है शौकीन बड़ी,
चट कर जाती मेवा काजू-
किशमिश खड़ी-खड़ी।
सर्दी इसका नाम, लाडली
सारे आलम की।