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"सड़क का पत्ता / सीताराम गुप्त" के अवतरणों में अंतर
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बोला उड़ पीपल का पत्ता,
‘‘चाहूँ तो पहुँचूँ कलकत्ता।
कहने को तू सड़क बड़ी है,
पर बरसों से यहीं पड़ी है।’’
बोली सड़क-‘‘न शेखी मार,
मैं तो जाती कोस हजार।’’