भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"केला / सुधा चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा चौहान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:16, 4 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

हरे-भरे छिलकों का केला,
इससे भरा हुआ है ठेला!
फलवाला चिल्लाता ले लो,
मीठा हलुआ-सा है देखो!
बीज न गुठली इसमें पाओ,
छिलका छीलो गप से खाओ!