भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अजनबी / पृथ्वी पाल रैणा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा }} {{KKCatKavita}} <poem> मैं ही...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:07, 4 अक्टूबर 2015 का अवतरण
मैं ही वह मैं नहीं हूँ,
या यह शहर पराया है ?
मेरी आँखों में उमड़ते हुए
सैलाव को कोई देखता नहीं ।
इस तरह गुजऱ जाता हूं
इस शहर की गलियों से
जैसे कि यहाँ कोई मुझे
जानता नहीं।
ये लोग भी कैसे हैं
गुमसुम-से
थके-हारे- से
खुद अपनी ही तस्वीर को
पहचानते नहीं ।
मैं खो गया हूँ भीड़ में
मेरी पहचान भी गुम है
अब जाकर किसे पूछूँ
मुझे जानते हो क्या ?