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21:02, 5 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
आए बादल, बादल आए,
पानी जेबों में भर लाए।
इतने सारे ताल-तलैया,
दैया...दैया, दैया दैया।
कहो, कहाँ से तुम भर लाए?
‘जेबों में भी कहीं ठहरता पानी बुद्धू’
बादल के पापा चिल्लाए!
जेब उलट दी उसने झटपट,
पानी बरसा टप-टप, टप-टप!
बादल के पापा मुस्काए।