भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शोर मचाते हम / रतनसिंह किरमोलिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रतनसिंह किरमोलिया |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:43, 5 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
हंडा-बंडा, मुर्गी अंडा
गली-गली में गिल्ली-डंडा
शोर मचाते हम!
मार-मार डंडे से गिल्ली
सैर कराते, उसको दिल्ली
धूम मचाते हम!
इंशाअल्ला, करके हल्ला
ले के भागे चाँदी छल्ला
पीछे पीछे हम!
ओढ़ लबादा दूल्हे दादा
संग में लाए, ब्याह के राधा
अब काहे का गम!
छुरी काँटे हमने बांटे
आमलेट ने मारे चाँटे
आँख हो गई नम!
बबलू भड़के उठके तड़के
खूब नहाए बदन रगड़ के
फिर खाई चमचम!