भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पास हुए हम हुर्रे-हुर्रे / रामवचन सिंह 'आनंद'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामवचन सिंह 'आनंद' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:02, 6 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

पास हुए हम, हुर्रे-हुर्रे!
दूर हुए गम, हुर्रे-हुर्रे!

रोज नियम से, किया परिश्रम
और खपाया भेजा।
धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा
हर दिन ज्ञान सहेजा।
थके नहीं हम, हुर्रे-हुर्रे!

हम कछुआ ही सही चले हैं
लगातार, पर धीमें,
हम खरगोश नहीं कि दौड़ें
सोएँ, रस्ते ही में।
रुका नहीं क्रम, हुर्रे-हुर्रे!

बात नकल की कोई हमने
कभी न मन में लाई,
सिर्फ पढ़ाई के बल पर ही
अहा सफलता पाई,
जीत गया श्रम, हुर्रे-हुर्रे!
पास हुए हम, हुर्रे-हुर्रे!