भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रात को घर की दरारों में छुपा रहता हूँ मैं/दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी']] }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:15, 6 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
बेसबब सैयाद की छत पर पड़ा रहता हूँ मैं
ऐसा लगता है मुहब्बत से बँधा रहता हूँ मैं
मेरे घर में कोई भी रहता नहीं मेरे सिवा
फिर भी तन्हाई मुसलसल ढूँढता रहता हूँ मैं
कब वो आयेगा हवा की पायलें पहने हुए
बारिशों की खिड़कियों से झांकता रहता हूँ मैं
दिन में लगता है मैं जैसे धूप का हूँ इश्तिहार
रात को घर की दरारों में छुपा रहता हूँ मैं
वो मेरी आँखों से मुझको सींचता है इसलिए
कोई भी मौसम हो फूलों सा खिला रहता हूँ मैं
सर्द मौसम जान लेने पर उतारू हो न जाय
इस लिए तुमको गुनाहों तापता रहता हूँ मैं