भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फुलझड़ियाँ / प्रेमकिशोर 'पटाखा'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमकिशोर 'पटाखा' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

05:49, 6 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

बैठा तार सितार पर
मच्छर गाता गीत,
टाँग तार से लड़ गई
साथ बजा संगीत।

कान उठे ऊपर तने
तुरंत भर गया जोश,
उठी ऊँट की पीठ तब
जब बैठा खरगोश।

टेलीविजन पर दिखलाए
गुच्छे अंगूरों के,
देख लोमड़ी खाने लपकी
भालू उसको रोके-

‘यह सच्चे अंगूर नहीं हैं
है झूठा आकर्षण,
भेंट अरे दूरदर्शन की है
करो दूर से दर्शन।’

-साभार: पराग, मार्च, 1980, 29