भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हीरा-मोती / शंभूप्रसाद श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंभूप्रसाद श्रीवास्तव |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
06:51, 6 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
हम गाँवों में खिलने वाले
नन्हे-मुन्ने फूल,
चंदन बन जाती है जगकर
अंग हमारे धूल!
सीधा-सादा रहन-सहन
मोटा खाना, पहनावा,
नहीं जानते ठाट-बाट
चतुराई और दिखावा।
मिलीं गोद में हमें प्रकृति की
दो वस्तुएँ महान,
हीरे जैसी हँसी हमारी,
मोती-सी मुसकान!
-साभार: शेरसखा, कलकत्ता