भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक शहर / विजय किशोर मानव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय किशोर मानव |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:52, 6 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
ऊँची चिमनी छोटे घर,
हमने देखा एक शहर।
चौड़ी सड़कें भीड़ भरी-
गलियों में रोशनी नहीं,
मोटर जब बोली पों-पों,
भैया की साइकिल डरी।
बड़ा कठिन है यहाँ सफर,
हमने देखा एक शहर।
दुकानों पर भीड़ बड़ी,
मिट्टी की औरतें खड़ी,
एक इमारत ऊँची सी,
सबसे ऊपर लगी घड़ी।
सुबह जगाता रोज गज़र
हमने देखा एक शहर।