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"जिधर निगाह उठ गई उसी का अक्स बन गया / दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी'" के अवतरणों में अंतर
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जिधर निगाह उठ गई उसी का अक्स आ गया
वो मेरे घर के पत्थरों को आइना बना गया
उदासियों के दश्त में तड़प रहा था प्यास से
तुम्हारी रौशनी पड़ी तो भीगता चला गया
मैं सुन रहा हूँ आज भी सदा उसी के पाँव की
बग़ैर दस्तकें दिये जो लौटकर चला गया
दरख़्त बनके गुफ़्तगू करूँगा आसमाँ से कल
ये और बात है कि अब ज़मीन में समा गया
भाक रही है किसकी रूह मेरे दिल में आज भी
ये कौन मुझमें रोते रोते क़हक़हे लगा गया
परिन्द आसमान में चला गया तो क्या हुआ
वहीं पे आएगा जहाँ पे आशियाँ बना गया
तुम्हारी याद इस तरह उड़ा रही है तितलियाँ
कि जैसे कोई ख़ंजरों को सान पर चढ़ा गया