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"शाम ढली सन्नाटा बिखरा गाँव में साँवली रात हुई / दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी'" के अवतरणों में अंतर

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जब तलक चाँद पर कुछ जवानी रही पानियों का बदन गुदगुदाता रहा
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शाम ढली सन्नाटा बिखरा गाँव में साँवली रात हुई
और नीला समन्दर तड़पता रहा, आह भरता रहा, कसमसाता रहा
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फूलों से फिर ख़ुश्बू निकली और हवा के साथ हुई
  
एक तिनका चटानों से फूटा हुआ कितना जाँबाज़ था कितना जीदार था
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तैर रहा था काले जल पर रौशनियों से शह्र मिरा
रात बारिश की बूँदों से लड़ता रहा, मुस्कुराता रहा, क़द बढ़ाता रहा
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लेकिन तुम आये तो जैसे चांदी की बरसात हुई
  
जैसे आपस में उलझी हुई टहनियाँ बूँद पड़ते ही ख़ुद में लिपटने लगें
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होंठों से दिनभर की चुप्पी वरना टूट नहीं पाती
अपनी बाहों से अपना बदन भींचकर वो बड़ी देर तक कसमसाता रहा
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शाम ढली थोड़ी से पी ली होंठ खुले बरसात हुई
 
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एक ख़ूबानियों की हँसी के सिवा गाँव का सारा माहौल ख़ामोश था
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घाटियों में अँधेरा महकता रहा , आप आते रहे, मैं बुलाता रहा
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साहसी
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मैं तुमसे... कह कर जो उसने अपना जुमला तोड़ा था
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बरसों में जाकर वो शायद आपसे पूरी बात हुई
 
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22:25, 11 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

शाम ढली सन्नाटा बिखरा गाँव में साँवली रात हुई
फूलों से फिर ख़ुश्बू निकली और हवा के साथ हुई

तैर रहा था काले जल पर रौशनियों से शह्र मिरा
लेकिन तुम आये तो जैसे चांदी की बरसात हुई

होंठों से दिनभर की चुप्पी वरना टूट नहीं पाती
शाम ढली थोड़ी से पी ली होंठ खुले बरसात हुई

मैं तुमसे... कह कर जो उसने अपना जुमला तोड़ा था
बरसों में जाकर वो शायद आपसे पूरी बात हुई