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"ख़ूबी किसी के हुस्न की यूँ भी बयान हो गई / दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी'" के अवतरणों में अंतर

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ख़ूबी किसी के हुस्न की यूँ भी बयान हो गई
जब उसका नाम ले लिया मीठी ज़ुबान हो गई

ग़फ़लत में यह ज़ुबाँ मेरी सच ही कहीं न बोल दे
इतनी सी एहतियात में कितनी थकान हो गई

तुम भी कहीं चले गए हम भी कहीं चले गए
यानी हमारी ज़िन्दगी ख़ाली मकान हो गई

धोके से कौन रात को हमको पुकारने लगा
कहता है कौन का में उठिए अज़ान हो गई