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"आग का अक्षर / शैलप्रिया" के अवतरणों में अंतर
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21:18, 13 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
अकसर हम धूप में
चढ़ा लेते हैं रंगीन चश्मे
और धरती रेत हो जाती है
पिघलते सूरज का उमगना
नहीं देख पाते
सच और झूठ के बीच झूलते
धूपछांही परदे
पुरानी इमारत के झाड़-फानूस की तरह
बदरंग लगते हैं
और इधर हमारी जंग शुरू हो जाती है
जब कोई औरत
संवेदना के टूटे-तार जोड़ती
अपनी पेबन्द-सी
जिन्दगी की किताब
पलट देती है
तब मैं दुख के पन्नों पर अंकित
अक्षरों में शामिल
एक अक्षर बन जाती हूं
आग का अक्षर!