"मोरपंख से लिख रही है प्यार / पूनम सिंह" के अवतरणों में अंतर
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क्षितिज के उस पार | क्षितिज के उस पार |
02:37, 15 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
क्षितिज के उस पार
डूबते सूरज का हाथ थाम
उतर रही है शाम
ताल के गहरे जल में
धीरे धीरे
छत की मुंडेर पर खड़ी एक स्त्री
दीर्घ निःश्वास ले कहती है
शाम हो गई
और उतरने लगती है सीढ़ियाँ
सँझाये घर में
अतल तक जाती सीढ़ियाँ
पानी में डूबी हैं
डूबा है सब कुछ अथाह जल में
लेकिन मछलियों की प्यास
वह कहाँ डूबती है ?
वह तो तैरती ही रहती है
नदी के चौड़े सीने पर
पंजों के बल
भटकती रहती है नंगे पाँव
समुद्री हवाओं की तरह
गर्म रेत पर
ज़िन्दगी के रेतीले मैदान में
भटकती स्त्री देख रही है
नदी के मुहाने पर बैठी
एक लड़की को जो
रंगीन लहरों के आईने में
संवार रही है अपना रूमानी चेहरा
और गीली रेत पर
मोरपंख से लिख रही है ’प्यार‘
कहाँ है -
धरती के किस ओर किस छोर पर?
ब्रहमांड के किस गहन गुह्यलोक में?
स्त्री पूछती है अपने आप से
फिर डबडबायी आँखों से
क्षितिज के उस पार
डूबते सूरज को देखती
उतरने लगती है सीढ़ियाँ