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"जब एहसास की झील में हमने दर्द का कंकर फेंका है / ज़ाहिद अबरोल" के अवतरणों में अंतर
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जब एह्सास<ref>अनुभूति</ref> की झील में हमने दर्द का कंकर फेंका है | जब एह्सास<ref>अनुभूति</ref> की झील में हमने दर्द का कंकर फेंका है | ||
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− | तूने पगले! नाहक़ अपने हाथ में पत्थर पकड़ा है | + | तूने पगले! नाहक़<ref>अकारण</ref> अपने हाथ में पत्थर पकड़ा है |
जीना है तो फिर अपने एह्सास को घर में रखकर आ | जीना है तो फिर अपने एह्सास को घर में रखकर आ |
23:54, 17 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
जब एह्सास<ref>अनुभूति</ref> की झील में हमने दर्द का कंकर फेंका है
इक दिलकश<ref>मनोहारी, मनोहर,चित्ताकर्षक</ref>से गीत का मंज़र<ref>दृश्य </ref> तह के ऊपर उभरा है
लोहे की दीवारों से महफ़ूज़<ref>सुरक्षित</ref> हैं इनके शीशमहल
तूने पगले! नाहक़<ref>अकारण</ref> अपने हाथ में पत्थर पकड़ा है
जीना है तो फिर अपने एह्सास को घर में रखकर आ
यह सुच्चा मोती क्यूँ अपनी जेब में लेकर फिरता है
चाहूँ भी तो छुड़ा न सकूँगा ख़ुद को इसकी क़ैद से मैं
तेरे ग़म से मेरा रिश्ता भूख और पेट का रिश्ता है
अपनी धूप को कब तक जोगन! छाँव से तू ढक पाएगी
तूने पराई धूप से माना ख़ुद को बचाकर रक्खा है
‘ज़ाहिद’! इस दुनिया में रहना तेरे बस की बात नहीं
तू तो पगले जनम जनम से सच्चे प्यार का भूखा है
शब्दार्थ
<references/>