भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जळ विरह (शीर्षक कविता) / संतोष मायामोहन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= संतोष मायामोहन |संग्रह=जळ विरह / स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
05:35, 21 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
बूंद पड़्यां
पिरथी तळ
छम-छम नाचै जळ।
बावड़ी हरखै
बरसण री आस
जीवै जळ।
नीं बरस्यां सूक मरै
विरह।