भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिल बे-तब-ओ-ताब हो गया है / 'क़ैसर'-उल जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='क़ैसर'-उल जाफ़री |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:16, 24 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

दिल बे-तब-ओ-ताब हो गया है
आईना ख़राब हो गया है

हर शख्स है इश्तिहार अपना
हर चेहरा क़िताब हो गया है

हर सांस से आ रही हैं लपकें
हर लम्हा अज़ाब हो गया है

जिस दिन से बने हो तुम मसीहा
हाल और ख़राब हो गया है

होटों पे खिला हुआ तबस्सुम
ज़ख्मों की नक़ाब हो गया है

सोचा था तो इश्क़ था हक़ीक़त
देखा है तो ख़्वाब हो गया है

'क़ैसर' गम-ए-ज़िन्दगी सिमट कर
इक जाम-ए-शराब हो गया है