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"दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है / 'क़ैसर'-उल जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

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23:26, 24 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है

कितने दिनों के प्यासे होंगे यारों सोचो तो
शबनम का क़तरा भी जिन को दरिया लगता है

आँखों को भी ले डूबा ये दिल का पागल-पन
आते जाते जो मिलता है तुम सा लगता है

इस बस्ती में कौन हमारे आंसू पोंछेगा
जो मिलता है उसका दामन भीगा लगता है

दुनिया भर की यादें हम से मिलने आती हैं
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है

किसको पत्थर मारूँ 'क़ैसर' कौन पराया है
शीश-महल में एक एक चेहरा अपना लगता है