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"आँख झपकते ही साजन ने जीवन का मुख मोड़ दिया / ज़ाहिद अबरोल" के अवतरणों में अंतर

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02:34, 25 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण


आंख झपकते ही साजन ने जीवन का मुख मोड़ दिया
किस आलम में हम को पकड़ा किस आलम में छोड़ दिया

अपने और पराये का क्या भेद हमें समझाते हो
अपना-पराया देखने वाली आंख को कब का फोड़ दिया

क्या ज्ञानी क्या अज्ञानी सब एक ही नाम को रटते हैं
जब भी उन का हाथ किसी ने बीच भंवर में छोड़ दिया

मेरी अना<ref>अहं</ref> मेरी राहों में कांटे बन कर बिखरी है
जब भी मुझको नींद आई है इसने मुझे झंझोड़ दिया

लाख कहो दीवाना हमको अपना हठ नहीं छोड़ेंगे
दिल के टूटे जाम में हमने अपना ख़ून निचोड़ दिया

यास<ref>निराशा</ref> के बादल घेर चुके थे “ज़ाहिद” दिल की नगरी को
तेरी इक मुस्कान ने पगली उनका रुख़ भी मोड़ दिया

शब्दार्थ
<references/>