भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यास में भीगी महानगरों की तलछट के सिवा / ज़ाहिद अबरोल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल |संग्रह=दरिया दरिया-...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:50, 27 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
यास में भीगी महानगरों की तलछट के सिवा
शहर में रक्खा ही क्या है चिपचिपाहट के सिवा
ब्याह तो लाए दुलहन आज़ाद हिन्दोस्तान की
हाथ कुछ आया न ख़ुदग़रज़ी के घूंघट के सिवा
मैं नये अंदाज़ से वाकिफ़ हूं लेकिन शाइरी
और भी कुछ है फ़क़त लफ़्ज़ों के जमघट के सिवा
कुफ्ऱ इक सालिम ख़ुदाई है ख़ुद अपने आप में
कुछ नहीं है जुस्तजू-ए-ग़ैब झंझट के सिवा
कुछ सुनाई दे न मुझको वक़्त-ए-तख़लीक-ए-सुख़न
नर्मर्रौ एहसास की हल्की सी आहट के सिवा
शे'र में “ज़ाहिद” न हो आहंग तो कुछ यूं लगे
ज़िक्र कोई गांव का जैसे हो पनघट के सिवा
शब्दार्थ
<references/>