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"सबकी सुन लो हर शिकायत और शिकवा जान लो / ज़ाहिद अबरोल" के अवतरणों में अंतर

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03:07, 27 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

सब की सुन लो हर शिकायत और शिकवः जान लो
अपने हांेठों से किसी को भी मगर ता‘ना न दो

दूसरों से ज़ख़्म जो पाये, ख़ुदा पर छोड़ दो
ज़ख़्म जो ख़ुद को दिये उनकी शिफ़ा ख़ुद ही करो

हर जगह मिल जायेगे दिलदार-ओ-दिलख़स्तः बहुत
अजनबी शहरों में भी अपना सा कोई ढूंढ लो

दिल की ओहदःदारीयां तब ही निभा पाओगे तुम
ख़्वाब हो या हो हक़ीक़त दोनों में यकसां रहो

काठ के, फ़ौलाद के हों या लहू और मांस के
एक से हैं सारे दरवाज़े कहीं दस्तक न दो

दश्त हों, परबत कि सहरा, पांव के नीचे हैं सब
अब तुम्हारी है यह हिम्मत, दोस्तो चलते चलो

इस जहां में मिलने वाले कम हुए जाते हैं अब
किस जगह चलना है “ज़ाहिद” बैठ कर कुछ सोच लो

शब्दार्थ
<references/>