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"महान कवि / अनिल कुमार सिंह" के अवतरणों में अंतर

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धारणाएँ हैं, मसलन गाँव<br>
 
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निगल जाता है महान कवि<br><br>
 
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धूप में रेत की तरह चमकती हैं उसकी कविताएँ।<br><br>
 
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पुल उसे बहुत प्यारे लगते हैं<br>
 
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जनता की छाती पर ‘ओवरब्रिज’ बनाता है महान कवि।<br><br>
 
जनता की छाती पर ‘ओवरब्रिज’ बनाता है महान कवि।<br><br>
  

09:48, 29 जून 2008 का अवतरण

देश की सबसे ऊँची जगह से बोलता है
हमारे समय का महान कवि।

चीज़ों के बारे में उसकी अपनी
धारणाएँ हैं, मसलन गाँव
उसे बहुत प्यारे लगते हैं जब
वह उनके बारे में सोचता है

गाँव के बारे में सोचते हुए स्वप्न में चलता है महान कवि।

वह तथ्यों को उनके
सुंदरतम रूप में पेश कर सकता है
सुंदरतम ढंग से पेश करने की लत के कारण
कभी-कभी तथ्यों को ही
निगल जाता है महान कवि

धूप में रेत की तरह चमकती हैं उसकी कविताएँ।

ज़िंदगी के तमाम दाँव-पेंचों के बावजूद
कविताएँ लिखता है
हम अपने को अधम महसूस करने लगें
इतने अच्छे ढंग से
कविताएँ सुनाता है वह

हम पर अहसान करता है महान कवि।
पुल उसे बहुत प्यारे लगते हैं
सत्ता के गलियारों को
फलांगने के लिए
जनता की छाती पर ‘ओवरब्रिज’ बनाता है महान कवि।

क्या आप ठीक-ठीक बता सकते हैं
कहाँ से सोचना शुरू करता है
हमारे समय का सबसे महान कवि !