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"जुनून-ए-इश्क़ को देखा है और समझा है / ज़ाहिद अबरोल" के अवतरणों में अंतर
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जुनून-ए-इश्क़ को देखा है और समझा है
न कह सकूंगा कि यह आंख ही का धोका है
हर एक बात पे दीवानःवार हंसता है
मुझे बताया गया है वो शख़्स मुझसा है
महब्बतें तो फ़क़त उस ख़ुदा की बख़्शिश हैं
जिसे वो दे दे उसी का निज़ाम चलता है
बुलंदियों पे पहुंच कर निगाह नीची रख
तभी पता यह चलेगा कहां तू पहुंचा है
कभी था इब्न-ए-ख़ुदा जिन के वास्ते “ज़ाहिद”
अब उनकी आंख में बस दार ही का ख़ाकः है
शब्दार्थ
<references/>