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यास-ओ-ग़म<ref>निराशा और ग़म</ref> , दर्द-ओ-हवादिस<ref>दर्द और दुर्घटनायें</ref> के हैं साए कितने
इक दुल्हन के लिए तैय्यार हैं दूल्हे कितने
मैं यही सोच के ख़ुश हूं कि हूं आशिक़ उसका
वो भी ख़ुश है कि फ़िदा उस पे हैं मुझसे कितने
जंग इक खेल है उन के लिए जो लड़ते नहीं
नौहःगर<ref>मृतक के लिए विलाप करने वाला</ref>मांओं से पूछो, मरे बेटे कितने
एक घर में तो फ़क़त<ref>केवल</ref>एक जला करता था
घर में बेटे जो हुए जल उठे चूल्हे कितने
साल पिछला तो फ़क़त हिज्र<ref>विरह, वियोग</ref>में गुज़रा ‘ज़ाहिद’
देखें इस साल में हैं वस्ल<ref>मिलन</ref>के लम्हे<ref>क्षण</ref> कितने
शब्दार्थ
<references/>