भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तू बादल बन / रामनरेश पाठक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:43, 2 नवम्बर 2015 का अवतरण
तुम बादल बन.
मरू में बरसो,
मधु क्षण सिरजो,
तुम बादल बन.
खेतों में गा,
मदों पर छा,
तुम बादल बन.
तुम जीवन दो,
तुम मधुवन दो,
तुम बादल बन.
गा, गा, मुसका,
मुसका, गा, गा,
तुम पागल बन.
छंदों पर छा,
रागों में आ,
तुम रागल बन.
तुम पागल बन.
तुम बादल बन.