भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वही मैंने किया जो दिल में ठाना / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:40, 8 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण
वही मैंने किया जो दिल में ठाना
भले ही कुछ कहे सारा ज़माना
जो आंसू दुनिया की ख़ातिर बहे हैं
उन्ही की बूँद में सागर समाना
लुटाओ जितना, उतनी ही बढ़ेगी
मुहब्बत है ही इक ऐसा ख़जाना
जलेगा तो करेगा सबको बेघर
वो तेरा हो या मेरा आशियाना
कि उसने मौत में भी ज़िन्दगी दी
हुआ है काम ये इक शायराना
रहेगा रोज सांसों की तरह ही
मेरे घर पे ये तेरा आना-जाना