भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उस एकांत में हर पहचान धुंधली है / अनुपमा पाठक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुपमा पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:24, 28 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण
वो एक पुल था
आंसुओं से निर्मित
उस से होकर
पहुंचा जा सकता था
उन प्रांतरों तक...
जहाँ तक पहुंचाना
किसी ठोस स्थूलता के
वश की बात नहीं... !
सूक्ष्म एहसासों तक
पहुँचते हुए
हम पीछे रह जाते हैं...
वहां पहुँचते हैं वही सार तत्व
जो रूह के
हिस्से आते हैं...
उस एकांत में
हर पहचान धुंधली है...
हमने मौन
आँखें मूँद ली है... !!