भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जूण जंजाळ री / संजय पुरोहित" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय पुरोहित |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>न...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

16:07, 28 नवम्बर 2015 का अवतरण

निरख‘र मुरझाऊं
नीं समेट पाऊं
खण्ड खण्ड खिण्डयोळै
वजूद ने म्हारै
पिछाण गुम अंतस अंधारौ
अर विचारां मांय घमसाण
लीर लीर जिनणी
निजर बिन चितराम
तळै बैठी आतमा
हाका करती काया
मुंडौ बणावंती चींत
पसरती छिब
तो कीं म्हैं
जी रैयो हूं
जूण जंजाळ री ?
नीं
नीं जीणौ जूण इण भांत
म्हैं करूं उडीक
सोनलिये सूरज री
लावैलो नूंवो परभात
म्हारै सोच रे आंगणै
आज नीं तो
काल