भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कागद अर रिस्‍ता / संजय पुरोहित" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय पुरोहित |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

16:12, 28 नवम्बर 2015 का अवतरण

रिस्ता भी हुवै
फ़गत कागदी
ऊजळै गाभा में
हारता जूण री चाल
बगत री थापां सूं
काळ रै धमीड़ां सूं
हुय जावै बदरंग
अंतस में छापै
अनै लागै दरकण
कागद अर रिस्‍ता
एक टिल्लो फगत
बाढ देवै अर कर देवै मून
कीं नीं रैवै लारै
पड़्या रैवै दोन्यूं
ऊंचै अटाळै में
बगत रै अटाळै
जठै दोन्यां रो
कीं नीं हुवै
अरथ अर मनोरथ।