भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"न तू देख इतने गुरूर से,के मैं लौट जाऊँगी दूर से / उर्मिला माधव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिला माधव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:36, 9 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

 न तू देख इतने गुरूर से, के मैं लौट जाऊँगी दूर से
ये पयाम तेरी नज़र को है, इसे जोड़ दिल के सुरूर से,

मेरे ग़म से तू भी है पुर असर, मेरा दावा है मैं ग़लत नहीं,
न यूँ ऐतकाफ़ से काम ले, आ बचाले खुद को कुसूर से

मेरे दिल का तू ही क़रार है, तुझे सोचती हूँ मैं रात दिन,
मेरी रात है तेरी जुस्तजू, है सहर भी तेरे ही नूर से,

मेरे दिल का कौन हफ़ीज़ है, तेरी दूरियां ही ज़वाल हैं,
ये बता के किससे गिला करें, जी मिले हैं दर्द गुरूर से,

ये बयान जो देना पड़ा मुझे तेरी जुस्तजू के सवाल पर
कभी ज़िन्दगी में विसाल हो, तो कहूँगी पूरे शऊर से