भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब ज़रूरी हो गया राहें बदलना / उर्मिला माधव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिला माधव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:37, 9 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
अब ज़रूरी हो गया राहें बदलना,
ख़ुद खड़े रहना अकेले है संभलना,
राह को हमवार करना ख़ुद-ब-ख़ुद ही,
और ख़ुद ही वक़्त के साँचे में ढलना,
भीख में क्या माँगना, कोई मुहब्बत,
जिस तरह हो ख़ुद के ही पैरों से चलना,
दम बख़ुद आज़ाद हैं अपने जहां में,
दम बख़ुद छोड़ेंगे गैरों पै मचलना,
दूसरों के दिल पै क्यूँ पाबंदियां हों,
ख़ुद भी आँखों को नहीं रो के मसलना!