भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जलसे कत्लगाहों में / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:15, 13 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
फिर
नये चंदन-वनों की खोज होगी
फिर चिताओं के लिए
चंदन कटेंगे
नये महलों के लिए
फिर जायेंगे पत्थर तराशे
रोज़ जलसे
कत्लगाहों में
बजेंगे ढोल-ताशे
फिर
जुलूसों की ज़रूरत रोज़ होगी
लोग फिर से
नये अभिनन्दन रटेंगे
मुँह-ढँके दिन भागकर
पिछली सुरंगों में छिपेंगे
बाँटकर घर-घर अँधेरे
धूप का सब नाम लेंगे
थके
कंधों पर सुबह भी बोझ होगी
बंद डिबियों में
नये सूरज बँटेंगे