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"दरगाह पर भीड़ / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
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रात-रात भर
कत्ल हुए हैं शहर-पनाहों पर
हत्यारों की भीड़ लगी है
फिर दरगाहों पर
बन्दनवारें महलसरा में
घर-घर कुचले फूल
आँख झुकाए सूरज बैठे
हुई भोर से भूल
लौटे टूटी चौखट लेकर
घर चौराहों पर
लंबा-चौड़ा एक कारवाँ
नकली चेहरों का
लाशघरों से खबर आई है
मौसम पहरों का
गुदे गुलामी के गुदने हैं
सबकी बाँहों पर